यह पहली बार है कि वैज्ञानिकों ने यह देखने में सफलता प्राप्त की है कि हमारा दिमाग यादों को कहां सहेजता है। कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के शाहाब वहदात ने यह अवलोकन एफ-एमआरआई की मदद से किया। एफ-एमआरआई का अर्थ है फंक्शनल मैग्नेटिक रिज़ोनेन्स इमेजिंग। इसकी विशेषता यह होती है कि इसमें शरीर के विभिन्न भागों में बदलते चुंबकीय क्षेत्र के आधार पर वहां चल रही गतिविधियों का अवलोकन किया जा सकता है।
सबसे पहले तो वहदात की टीम को ऐसे लोग ढूंढना पड़े जो एमआरआई स्कैनर के शोर में सो सकें। करीब 50 लोगों को एक नकली स्कैनर में लिटाया गया और उनमें से मात्र 13 को ही वहां नींद आई। आगे के प्रयोग इन 13 कुंभकरणों पर किए गए।
13 लोगों के इस समूह को पियानो के बटन दबाने जैसा एक क्रम सिखाया गया। पांच बटनों को एक खास क्रम में दबाना था। यह क्रम सीखने में हर व्यक्ति को करीब 10-20 मिनट लगे। जब वे यह क्रम ठीक से सीख गए तो उनके सिर पर एक टोपी पहनाई गई जिसमें ईईजी के इलेक्ट्रोड्स लगे थे जिनकी मदद से उनके दिमाग की विद्युतीय हलचल की निगरानी की जा सकती थी। इन्हें अब एफ-एमआरआई स्कैनर में लिटा दिया गया। इसमें पता चलता रहता है कि दिमाग का कौन-सा क्षेत्र कब सक्रिय है। स्कैनर में उन्हें ढाई घंटे तक लेटाकर रखा गया।
शुरुआत में देखा गया कि दिमाग की गतिविधि वही थी जैसे कि उस क्रम में बटनों को दबाने पर होती थी और यह गतिविधि दिमाग के बाहरी भाग (कॉर्टेक्स) में चल रही थी।
इसके बाद जब ये लोग गहरी नींद में सो गए तो विद्युतीय गतिविधि का उपरोक्त क्रम कॉर्टेक्स में से नदारद होता गया किंतु साथ-साथ ठीक वैसा ही क्रम दिमाग के थोड़े अंदरुनी हिस्से में शुरू हो गया।
इससे लगता है कि जागृत अवस्था में तो ये लोग उस क्रम को मन ही मन दोहरा रहे थे किंतु नींद में वे उसी क्रम को दिमाग के अन्य हिस्से में दोहराने लगे थे। इसका मतलब हुआ कि इस क्रम को अब स्थायी रूप से सहेजा जा रहा था। इस प्रयोग के आधार पर शोधकर्ताओं का मत है कि यदि यादों को भलीभांति सहेजना है तो शुरुआती कुछ घंटों की नींद बहुत ज़रूरी है। चिकित्सा के संदर्भ में इसके क्या परिणाम होंगे, फिलहाल कहना मुश्किल है किंतु वहदात को लगता है कि यह अनिद्रा से पीड़ित व्यक्तियों के लिए मददगार हो सकता है। (स्रोत फीचर्स)