हाल में राष्ट्र संघ की रिपोर्ट में बताया गया है कि खाद्यान्न की कमी नहीं होने के बावजूद भुखमरी फिर से बढ़ रही है। राष्ट्र संघ के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार विश्व स्तर पर लगभग 81.5 करोड़ लोग यानी विश्व आबादी का 11 प्रतिशत हिस्सा भुखमरी का शिकार है। 15 वर्षों में पहली बार भुखमरी में यह वृद्धि देखी गई है।
वैश्विक समुदाय की व्यापक पहल के कारण विश्व में सन 1990 और 2015 के बीच कुपोषित लोगों की संख्या आधी रह गई थी। सन 2015 में राष्ट्र संघ सदस्यों ने टिकाऊ विकास लक्ष्यों को अपनाया था जिनका उद्देश्य 2030 तक भुखमरी को खत्म कर देना था। लेकिन हाल की रिपोर्ट बताती है कि कई वर्षों की गिरावट के बाद भुखमरी फिर से बढ़ने लगी है।
लगातर समाचारों में आने वाली खबरें गवाह हैं कि पिछले कुछ वर्षों से हमारा ग्रह प्राकृतिक आपदाओं से पटा रहा है जिसके कारण शरणार्थियों की संख्या और हिंसा बढ़ी है और जीवन दूभर होने लगा है। ये आपदाएं गरीबों, शरणार्थियों और युद्ध-ग्रस्त क्षेत्रों के लोगों की भोजन तक पहुंच को मुश्किल बना देती हैं।
छोटे किसानों और पशु पालकों को अपनी फसलों, पशुओं और ज़मीन के बारे में निर्णय करने के लिए ज़रूरी सेवाएं, बाज़ार और ऋण आसानी से उपलब्ध नहीं हैं। सरकारी और वैश्विक विकल्प सीमित हैं और जातीय, लिंग और शैक्षिक बाधाएं इनके आड़े आती हैं। नतीजा यह होता है कि कई बार संकट की स्थिति में वे सुरक्षित या टिकाऊ खाद्य उत्पादन नहीं कर पाते हैं।
यूएन की नई रिपोर्ट के अनुसार मात्र खाद्य उत्पादन बढ़ाकर भुखमरी को कम या खत्म नहीं किया जा सकता है। एक ढुलमुल विश्व में ग्रामीण आबादी के लिए विकल्पों को बढ़ाना चाहिए।
पूरे विश्व में सामाजिक और राजनीतिक उथल-पुथल चरम सीमा पर है। सन 2010 से राज्यों के बीच संघर्ष में 60 प्रतिशत वृद्धि हुई है और आंतरिक सशस्त्र संघर्ष में 125 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। रिपोर्ट के अनुसार भोजन की दृष्टि से असुरक्षित 50 प्रतिशत लोग हिंसाग्रस्त इलाकों में रहते हैं। इसी प्रकार से तीन-चौथाई कुपोषित बच्चे संघर्ष-प्रभावित क्षेत्रों में रहते हैं। और इन्हीं क्षेत्रों में लगातार तूफान, सूखा और बाढ़ की स्थिति भी देखी गई है, जिसका बड़ा कारण वैश्विक जलवायु परिवर्तन है। जलवायु-सम्बंधी आपदाओं से तबाह लोग व जलवायु के कारण फसल/पशु-पालन में विफलता सामाजिक अशांति का कारण बनती है।
युद्ध किसानों को सबसे अधिक प्रभावित करते हैं। न ही वहां फसल उत्पादन के लिए साधन उपलब्ध हो सकते हैं और न ही वे फसल काट पाते हैं। छोटे-मोटे संकट के कारण भी खेती-किसानी में कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है। संकट की स्थिति में किसानों और चरवाहों को अपना स्थान छोड़कर कहीं और पलायन करने के लिए मजबूर होना पड़ता है। यह पलायन भी भुखमरी का एक बड़ा कारण है। 2007 से 2016 के बीच शरणार्थियों की संख्या लगभग दुगनी हुई है। एक अध्ययन से पता चला है कि पलायन का सबसे ज़्यादा शिकार कमज़ोर तबके के लोग होते हैं।
ऐसी परिस्थितियों से पार पाने के लिए न केवल खाद्य सुरक्षा को मज़बूत बनाने की ज़रूरत है बल्कि ग्रामीण अजीविका को और मज़बूत बनाने की ज़रूरत है। (स्रोत फीचर्स)