दुनिया भर में मोटापा एक समस्या बनता जा रहा है। मोटापे के साथ कई अन्य समस्याएं जुड़ी होती हैं। जैसे डायबिटीज़, ह्मदय सम्बंधी रोग वगैरह। इससे निजात पाने के लिए आम तौर पर भोजन पर नियंत्रण और व्यायाम के अलावा आजकल सर्जरी के माध्यम से पेट की साइज़ को कम करना भी सुझाया जा रहा है। अब एक नया रास्ता सामने आया है जो शायद कारगर होने के साथ-साथ साइड प्रभावों से भी मुक्त है।
एमजेन नामक दवा कंपनी के शोधकर्ताओं ने पाया है कि शरीर में एक प्रोटीन होता है जो चयापचय की क्रियाओं पर नियंत्रण करता है। खास तौर से यह प्रोटीन शरीर द्वारा ऊर्जा के उपभोग का नियमन करता है। शोधकर्ताओं ने यह देखा था कि कई जंतु प्रजातियों में दुबले-पतले जंतुओं में एक प्रोटीन GDF15 की मात्रा काफी अधिक होती है। इसके मद्देनज़र उन्होंने सोचा कि क्यों न विभिन्न जंतुओं को GDF15 की खुराक देकर देखा जाए कि इसका उनके वज़न पर क्या असर पड़ता है।
मुरिएल वेनिएन्ट के नेतृत्व में कार्यरत टीम ने पहले तो यह प्रोटीन शरीर में पहुंचाने के लिए जीन उपचार का सहारा लिया। उन्होंने GDF15 प्रोटीन बनाने वाला जीन जंतुओं में प्रविष्ट करा दिया। ऐसा करने पर फायदा तो हुआ किंतु दिक्कत यह थी कि शरीर में इस प्रोटीन का सफाया बहुत तेज़ी से होता है क्योंकि यह प्रोटीन बहुत अस्थिर अणु है।
लिहाज़ा, वेनिएन्ट और उनके साथियों ने सीधे यह प्रोटीन शरीर में पहुंचाने का निर्णय लिया। इसके लिए उन्होंने इस प्रोटीन में थोड़ा परिवर्तन किया ताकि उसका अणु टिकाऊ बन जाए। इस परिवर्तित GDF15 के इंजेक्शन चूहों को दिए गए। साइन्स ट्रांसलेशन मेडिसिन नामक शोध पत्रिका में प्रकाशित शोध पत्र में उन्होंने बताया है कि चूहों को हर सप्ताह परिवर्तित GDF15 की खुराक देने पर उनके वज़न में 17-24 प्रतिशत तक की कमी आई। बंदरों में इस खुराक से वज़न में 5-10 प्रतिशत की कमी आई।
अभी यह स्पष्ट नहीं है कि वज़न में कमी क्यों आती है। शोधकर्ताओं ने कुछ अटकलें लगाई हैं। जैसे एक विचार तो यह है कि शायद यह प्रोटीन आहार नाल से मस्तिष्क को जाने वाले संदेशों में हस्तक्षेप करता है और मस्तिष्क को लगता है कि पेट भर गया है। यह भी हो सकता है कि पेट भरे होने का यह एहसास ज़्यादा लंबे समय तक बना रहता है। एक विचार यह भी है कि शायद इस प्रोटीन की उपस्थिति में ये जंतु ज़्यादा वसा वाले भोजन की अपेक्षा कम वसा वाला भोजन पसंद करने लगते हैं। बहरहाल, जैसे भी हो मगर वज़न तो कम होता है।
इस तरीके को अभी मनुष्यों पर आज़माना शेष है। एक चिंता यह है कि वज़न कम होने के साथ-साथ शायद मांसपेशियां भी कमज़ोर पड़ सकती हैं। दूसरी चिंता यह है कि मोटापे के अन्य उपचारों की तरह कहीं यह भी तो डिप्रेशन वगैरह का कारण नहीं बनेगा। इन सवालों के जवाब तो तभी मिलेंगे जब इसका परीक्षण इंसानों पर किया जाएगा। (स्रोत फीचर्स)