भारत डोगरा
13 अप्रैल को संयुक्त राज्य अमेरिका ने अफगागिस्तान में गैर-परमाणु शस्त्रों में सबसे विनाशक माना जाने वाला बम गिराया। इस बम का वज़न दस हज़ार कि.ग्रा. बताया गया है और इसकी विस्फोटक क्षमता 11 टन टीएनटी के बराबर है। इसे ‘मदर ऑफ ऑल बॉम्स’ यानी सब बमों की जननी भी कहा गया है। इस घटना के शीघ्र बाद यह समाचार प्रकाशित हुआ कि रूस के पास तो इससे भी अधिक विध्वंसक गैर-परमाणु बम है जो वज़न में चाहे कम (7000 कि.ग्रा.) है पर उसकी विध्वंस शक्ति चार गुना अधिक है (44 टन टीएनटी के बराबर)। इसको सब बमों का बाप या फादर ऑफ ऑल बॉम्स कहा गया है।
ये बम बहुत विध्वंसक होते हुए भी परमाणु बमों के सामने तो बौने ही हैं क्योंकि हिरोशिमा पर वर्ष 1945 में गिराए गए परमाणु बम की विध्वंसक क्षमता 15000 टन टीएनटी के बराबर थी।
परमाणु हथियारों के प्रसार को रोकने के लिए गठित आयोग ने दिसंबर 2009 में जारी अपनी रिपोर्ट में बताया है कि दुनिया में 23 हज़ार परमाणु हथियार मौजूद हैं, जिनकी विध्वंसक क्षमता हिरोशिमा पर गिराए गए एटम बम से डेढ़ लाख गुना ज़्यादा है। आयोग ने बताया है कि अमेरिका और रूस के पास 2000 परमाणु हथियार ऐसे हैं जो बेहद खतरनाक जगहों पर तैनात हैं व मात्र चार मिनट में दागे जा सकते हैं।
आयोग ने कहा है कि जब तक कुछ देशों के पास परमाणु हथियार हैं, तब तक अन्य देश भी उन्हें प्राप्त करने का प्रयास करते रहेंगे। यहां तक कि आतंकवादी संगठन भी परमाणु हथियार प्राप्त करने की क्षमता रखते हैं। अन्य महाविनाशक हथियारों, विशेषकर रासायनिक व जैविक हथियारों,के प्रतिबंध के समझौते चाहे हो चुके हैं, पर विश्व इन हथियारों से मुक्त नहीं हुआ है। जहां तक आतंकवादियों द्वारा महाविनाशक हथियारों के उपयोग का खतरा है, तो यह परमाणु हथियारों की अपेक्षा रासायनिक हथियारों के संदर्भ में और भी अधिक है।
मानव विकास रिपोर्ट 1997 के अनुसार इस समय केवल परमाणु हथियारों के भंडार की विनाशक शक्ति बीसवीं शताब्दी के तीन सबसे बड़े युद्धों की कुल विस्फोटक शक्ति से सात सौ गुना अधिक है।
अभी तक महाविनाशक हथियारों (परमाणु, रासायनिक, जैविक) का जो वास्तविक उपयोग हुआ है, उसमें हिरोशिमा व नागासाकी पर गिराए गए परमाणु बमों को सबसे अधिक विनाशक माना गया है। दूसरी ओर, गैर-परमाणु बमों की इतनी सघन बमबारी के अनेक उदाहरण उपलब्ध हैं, जिन्होंने नागासाकी से भी अधिक जीवन-क्षति की।
संयुक्त राष्ट्र संघ के पूर्व महासचिव कोफी अन्नान ने वर्ष 2000 में कहा था, “छोटे हथियारों से होने वाली मौतें अन्य सब तरह के हथियारों से होने वाली मौतों से कहीं अधिक हैं। अधिकांश वर्षों के आंकड़े बताते हैं कि किसी एक वर्ष में इन छोटे हथियारों से मरने वालों की संख्या हिरोशिमा व नागासाकी पर गिराए गए परमाणु बमों से मारे गए लोगों से भी अधिक है। यदि ऐसे हथियारों द्वारा की गई जीवन-क्षति को देखा जाए तो ये छोटे हथियार ही महाविनाशक हैं। पर अभी तक इन हथियारों के प्रसार को रोकने या नियंत्रित करने की विश्व स्तर पर कोई व्यवस्था नहीं है।”
एमनेस्टी इंटरनेशनल व ऑक्सफैम ने हाल की एक रिपोर्ट ‘ध्वस्त जीवन’ में कहा है, “किसी भी अन्य हथियार की अपेक्षा छोटे हथियार अधिक लोगों को मारने, घायल करने, विस्थापित करने, उत्पीड़ित करने, अगवा करने व बलात्कार करने के लिए उपयोग होते हैं।... इस समय विश्व में लगभग 64 करोड़ छोटे हथियार हैं। लगभग 60 प्रतिशत छोटे हथियार सैन्य व पुलिस दलों से बाहर के क्षेत्र में हैं। केवल सेना के उपयोग के लिए वर्ष 2001 में 14 अरब कारतूसों का उत्पादन किया गया - विश्व की कुल आबादी के दुगने से भी ज़्यादा कारतूस।”
विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा तैयार की गई ‘वैश्विक हिंसा व स्वास्थ्य रिपोर्ट’ (हिंसविर) के अनुसार, “अधिक गोलियों को अधिक तेज़ी, अधिक शीघ्रता व अधिक दूरी तक फायर करने की क्षमता बढ़ी है व इसके साथ ही इन हथियारों की विनाश क्षमता बढ़ी है।” एक एके-47 में तीन सेकंड से भी कम समय में 30 राउंड फायर करने की क्षमता है व प्रत्येक गोली एक कि.मी. से भी अधिक दूरी तक जानलेवा हो सकती है।
राष्ट्र संघ सुरक्षा परिषद के 5 स्थायी सदस्यों को बहुत महत्वपूर्ण अधिकार दिए गए हैं व उनसे उम्मीद की जाती है कि वे विश्व शान्ति के प्रति विशेष ज़िम्मेदारी का परिचय देंगे। पर कड़वी सच्चाई तो यह है कि ये पांच देश - अमेरिका, रूस, चीन, यूके व फ्रांस - विश्व के सबसे बड़े हथियार निर्यातक हैं।
इस तरह विविध कारणों से हथियारों की विनाशक क्षमता बहुत तेज़ी से बढ़ी है और इस पर समय रहते नियंत्रण करना बहुत ज़रूरी है। इसके लिए खतरनाक हथियारों के उत्पादन, वितरण और आसान उपलब्धि पर रोक लगाना बहुत ज़रूरी है। (स्रोत फीचर्स)