जल्द ही भारत के पास भी तैरती हुई नौका-प्रयोगशाला होगी। यह असम की ब्राह्मपुत्र नदी पर तैरेगी। ‘ब्राह्मपुत्र जैव-विविधता और जीव विज्ञान नौका’ नामक यह प्रयोगशाला एक दो मंज़िला नाव है जिसे 50 करोड़ के शुरुआती निवेश से शुरू किया जा रहा है। उम्मीद की जा रही है कि इससे नदी के पारिस्थितिक तंत्र पर जलवायु परिवर्तन, बांध और मानवीय हस्तक्षेप से होने वाले प्रभावों पर शोध किया जा सकेगा।
इस साल (2017) के अंत तक इस नौका के नदी में उतरने की उम्मीद है। इसका उद्देश्य माजुली द्वीप के तेज़ी से हो रहे कटाव का भी अध्ययन करना है। माजुली कभी विश्व का सबसे बड़ा नदी-द्वीप था। माजुली अपनी जैव-विविधता और संस्कृति और वैष्णव पंथ के लिए प्रसिद्ध है। पिछले कुछ दशकों में बड़े पैमाने पर कटाव के कारण यह द्वीप अपने मूल क्षेत्रफल 1200 वर्ग किलोमीटर से सिकुड़ कर आधा रह गया है।
दक्षिणी अमेरिका में अमेज़न नदी पर स्थापित नौका-प्रयोगशाला से प्रेरित इस नौका-प्रयोगशाला पर काम साल 2017 के अंत तक शुरू हो जाएगा। वैज्ञानिकों द्वारा इस तैरती-प्रयोगशाला का ब्लूपिं्रट आईआईटी, गुवाहटी में तैयार किया जा रहा है। प्रयोगशाला के अलावा इस नौका में नमूनों के लिए कोल्ड स्टोरेज, सेटेलाइट नावों का एक बेड़ा और स्थानीय लोगों की पहुंच और शिक्षा के लिए एक मंज़िल रखे जाने की अपेक्षा की जा रही है।
आईआईटी, गुवाहटी के वैज्ञानिकों, जो इस प्रोजेक्ट का हिस्सा हैं, का कहना है कि दुनिया की लंबी नदियों में से एक ब्राहृपुत्र का जल विज्ञान, पानी की गुणवत्ता, जैव विविधता और ब्राहृपुत्र से जुड़े पारिस्थितिकी तंत्र पर अध्ययन ‘चुनौतीभरा और रोमांचक’ होगा। दरअसल, यह नौका-प्रयोगशाला उत्तर-पूर्व में शुरू किए जा रहे तीन प्रोजेक्ट में से एक है।
अन्य कार्यक्रमों में से एक है औषधीय पौधों के संरक्षण के लिए 50 करोड़ की लागत का फाइटो-फार्मा प्लांट, तथा दूसरा है उत्तर-पूर्वी क्षेत्र के स्कूल और कॉलेजों में किफायती सूक्ष्मदर्शी ‘फोल्डस्कोप’ का वितरण। यह सूक्ष्मदर्शी अत्यंत कम लागत (लगभग 70 रुपए) पर बना एक उपकरण है जिसकी मदद से सूक्ष्म अवलोकन किए जा सकते हैं।
बायोटेक्नोलॉजी विभाग के सचिव कृष्णस्वामी विजयराघवन ने कहा है कि परियोजना नदी को प्रभावित करने वाले पर्यावरणीय और मानव वैज्ञानिक कारकों और नदी के जल विज्ञान, पानी की गुणवत्ता और जैव विविधता की निरंतर जांच के लिए बनाई जा रही है। ब्राहृपुत्र तीन देशों - चीन, भारत और बांग्लादेश से गुज़रकर बंगाल की खाड़ी में मिलती है। इसके 3800 कि.मी. के विशाल विस्तार के कारण इसका पर्याप्त अध्ययन नहीं हो सका है। (स्रोत फीचर्स)