एक सर्वेक्षण के मुताबिक 70 प्रतिशत से अधिक शोधकर्ताओं ने किसी अन्य प्रयोगशाला में हुए प्रयोग को दोहराने की कोशिश की और असफल रहे। नेचर द्वारा 1576 शोधकर्ताओं के साथ किए गए इस सर्वेक्षण में ऐसे कई चौंकाने वाले नतीजे सामने आए हैं।
गौरतलब है कि विज्ञान में आगे बढ़ने का एक प्रमुख आधार यह है कि उसके प्रयोग समान परिस्थिति निर्मित करके कहीं भी दोहराने योग्य होना चाहिए। इस दृष्टि से यह चिंता का विषय है कि 70 प्रतिशत मामलों में दोहराना संभव नहीं हुआ। सर्वेक्षण में शामिल 52 प्रतिशत शोधकर्ताओं ने माना कि यह चिंता का विषय है, मगर मात्र 31 प्रतिशत का ही विचार था कि परिणामों को दोहराने में असफलता का मतलब है कि शुरुआती परिणाम गलत थे। शेष का कहना था कि वे प्रकाशित शोध पत्रों पर विश्वास करते हैं।
वैसे पहले भी यह जानने के प्रयास हुए हैं कि प्रयोग की पुनरावृत्ति की दर क्या है। मनोविज्ञान और कैंसर अनुसंधान के संदर्भ में किए गए अध्ययनों से पता चला था कि इन विषयों में पुनरावृत्ति की सफलता की दर क्रमश: 40 और 10 प्रतिशत है। वर्तमान सर्वेक्षण में 73 प्रतिशत उत्तरदाताओं का कहना था कि उनके क्षेत्र में शोध पत्र विश्वसनीय हैं; भौतिक शास्त्रियों और रसायन शास्त्रियों में यह विश्वास ज़्यादा नज़र आया।
ब्रिस्टल विश्वविद्यालय के मनोवैज्ञानिक मार्कस मुनाफो का मत है कि पुनरावृत्ति की समस्या तो है मगर विज्ञान के अग्रणी क्षेत्रों में शोध में कई मर्तबा परिणाम बहुत दृढ़ नहीं होते। हम चाहते हैं कि नई-नई चीज़ें खोजें मगर साथ ही हम गुमराह करने वाले परिणामों से भी बचना चाहते हैं।
एक दिक्कत यह भी सामने आई कि सर्वेक्षण में बड़ी संख्या में शोधकर्ताओं ने कहा कि वे किसी अन्य के प्रयोग को दोहराने में असफल रहे, मगर 20 प्रतिशत से भी कम ने कहा कि उन्हें किसी ने संपर्क करके बताया हो कि उनके प्रयोग के परिणाम नहीं मिल रहे हैं। इसका एक कारण यह हो सकता है कि व्यक्ति दूसरों के प्रयोगों को लेकर सवाल उठाए तो उसे अक्षम या अकुशल कह दिया जाता है।
जहां तक समस्या के निराकरण का सवाल है तो एक-तिहाई शोधकर्ताओं ने बताया कि उनकी प्रयोगशालाओं में प्रयोगों को दोहराने के संदर्भ में सुधार के प्रयास किए गए हैं। इसके तहत खुद उस काम को दोहराकर देखना या किसी अन्य से उसे करके देखने को कहना आम तरीके हैं। इसके अलावा प्रायोगिक विधि का मानकीकरण और उसे सही तरीके से लिखना भी एक उपाय रहा है। मगर यदि ऐसे तरीके अपनाए जाते हैं तो शोध के प्रकाशन में समय बहुत लगता है। बहरहाल, इस सर्वेक्षण के प्रकाशन के बाद स्थिति ज़्यादा स्पष्ट तौर पर सामने आई है और उम्मीद की जा सकती है कि उपयुक्त समाधान भी खोजे जाएंगे। (स्रोत फीचर्स)
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Srote - August 2016
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